बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली के भौगोलिक उपागम से आपका क्या आशय है? इसके प्रमुख चरणों का भी वर्णन कीजिए।
उत्तर -
जी०आई०एस० के भौगोलिक उपागम
भौगोलिक सूचना प्रणाली भूगौल की एक नवीनतम तकनीक है। वास्तव में भूगोल एवं जी०आई०एस० ( भौगोलिक सूचना प्रणाली) दोनों ही पृथ्वी के धरातल की सूचनाओं के सम्बन्ध में उपयुक्त समझ उत्पन्न करते हैं। भौगोलिक ज्ञान का उपयोग मानव के क्रियाकलापों को संचालित करने के साथ ही भौगोलिक उपागम की उत्पत्ति होती है। भौगोलिक उपागम का आशय किसी भी समस्या के समाधान के लिए एक नये तरीके की सोच विकसित करना है जो भौगोलिक सूचनाओं को एकीकृत और संगठित करती है जिससे पृथ्वी जैसे ग्रह के बारे में अधिकतम जानकारी प्राप्त की जा सके।
भौगोलिक उपागम भौगोलिक ज्ञान को जागृत कर हमारी जिज्ञासा को बढ़ाता है। पृथ्वी का मापन, आंकड़ों या सूचनाओं का व्यवस्थीकरण, विभिन्न प्रक्रियाओं की मॉडलिंग, अवयवों में आपसी सम्बन्ध इत्यादि भौगोलिक ज्ञान के प्रमुख बिन्दु हैं जिनका अध्ययन भौगोलिक विश्लेषण के अंतर्गत किया जाता है। भौगोलिक उपागम के माध्यम से सांसारिक घटनाओं का डिजाइन भी योजनाबद्ध किया जा सकता है। भौगोलिक उपागम के प्रमुख चरण निम्न प्रकार हैं-
भौगोलिक उपागम के प्रमुख चरण
चरण-1 प्रश्न करना - किसी भी भौगोलिक समस्या को उजागर करने से पूर्व प्रश्न उठता है कि जिस समस्या का समाधान या विश्लेषण किया जाना है या किया जा रहा है वह समस्या क्या है तथा वह भौगोलिक दृष्टि से कहाँ स्थित है? इस प्रकार के प्रश्न करने से उसके उत्तर प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
चरण - 2 उपार्जन करना - भौगोलिक उपागम के दूसरे चरण में समस्या सम्बन्धित सूचनाओं की सूची निर्धारित की जाती है जिनकी विश्लेषणकर्ता को नितान्त आवश्यकता होती है। यह भी निश्चित किया जाता है कि अमुक सूचना प्राप्त की जा सकती है या जी०आई०एस० के अंतर्गत तैयार की जा सकती है। आँकड़ों के प्रकार एवं उनके भौगोलिक महत्व के माध्यम से किसी समस्या के मूल में पहुँचने की कला और विधियों को भी स्पष्ट करने में मदद मिलती है।
यहाँ उच्च स्तर की अध्ययन विधियाँ उपयोग के लिए आवश्यक हैं जिससे नये प्रकार के आंकड़ों को उत्पन्न किया जाये। नये प्रकार की सूचनाओं को सूचीबद्ध करने के लिए भौगोलिक धरातलीय तथा अधरातलीय सूचनाओं की आवश्यकता होती है। इन सूचनाओं एवं आँकड़ों को तालिकाओं, नये प्रकार के मानचित्रों की परतों इत्यादि तरीकों से जीआईएस द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
चरण-3 परीक्षण करना - सूचनाओं या आँकड़े की उत्तमता को परखना भी भौगोलिक उपागम का प्रमुख चरण है। इस विधि में यह देखा जाता है कि प्राप्त किये गये आँकड़े हमारे अध्ययन के लिए अनुकूल है या नहीं। अनुकूल होने पर उन्हें किस रूप में उपयोग किया जा सकता है।
परीक्षण के अंतर्गत प्रत्यक्ष निरीक्षण, अन्वेषण (संगठित करने के तरीके), एक आँकड़ा सेट से दूसरे आँकड़ा सेट से सम्बन्ध, आँकड़ों को व्यवस्थित करने के विज्ञान के नियम तथा आँकड़ों के प्राप्ति का स्रोत ( Meta data) इत्यादि को सम्मिलित किया जाता है।
चरण - 4 विश्लेषण करना - जीआईएस के अगले चरण में, आँकड़ों अथवा सूचनाओं की व्याख्या करनी होती है। परिणामों के आधार पर यह तय किया जाता है कि प्रयोग की जा रही सूचनायें उपयोगी और वैधानिक हैं या नहीं। विभिन्न अवयवों के विश्लेषण करने में उपयोग की गई विधियाँ कितनी कारगर सिद्ध हुई हैं?
इस प्रकार जीआईएस मॉडलिंग की जाती है जिसके माध्यम से परिणामों के परिवर्तन को सरल, शुद्ध एवं आसान बनाया जाता है, जो नये परिणाम प्रस्तुत करने में सहायक होते हैं कि रॉस्टर एवं विक्टर आँकड़ा मॉडल इसी कदम के प्रतिफल हैं।
चरण -5 कार्यान्वयन (Action) - परिणामों का प्रस्तुतीकरण एवं कार्यान्वयन करना भौगोलिक उपागम का अन्तिम चरण होता है। किसी भी समस्या के परिणामों की रिपोर्ट, मानचित्रों, तालिकाओं, चार्टों या इन्टरनेट या वेब अथवा अन्य मुद्रित माध्यमों से प्रयोगकर्ताओं के मध्य आदान-प्रदान की जा सकती हैं। किसी भी विश्लेषण के परिणामों की प्रस्तुतीकरण के उपयुक्त साधनों की नितान्त आवश्यकता होती है। यह देखा जाता है कि कौन सी विधि परिणामों को उपयोगकर्ता तक पहुँचाने में अति सहयोगी हो सकती है। इसके लिये सभी तरह के ऑडियो विजुअल विद्युतीकरण यंत्रों से समस्या के परिणामों को आंशिक एवं पूर्ण रूप से प्रस्तुत कर उस पर कार्यान्वयन किया जाता है। परिणामों के द्वारा समस्या का निदान करना ही किसी योजना की सफलता मानी जाती है।
भौगोलिक सूचना प्रणाली की विषय वस्तु तथा क्रियाकलापों को धरातलीय सूचना प्रणाली भी कहते हैं, क्योंकि यह किसी भी स्थान विशेष पर स्थित आँकड़ों का संचालन करती है। इसी प्रकार 'अधरातलीय आँकड़ा' शब्द का प्रयोग समान्तर रूप से लाक्षणिक आँकड़ों के लिये किया जाता है। उदाहरण के लिए, वर्षा, तापमान, मिट्टी के रासायनिक गुण, जनसंख्या आँकड़ा इत्यादि। यहाँ पर यह समझना आवश्यक है कि धरातलीय आँकड़ों के संचालन के लिये कई प्रकार के तकनीकी शब्द प्रयोग किये जाते हैं जिनमें कुछ इस प्रकार हैं-
(a) भू-सूचना प्रणाली
(b) धरातलीय सूचना प्रणाली
(c) भूमि सूचना प्रणाली
(d) बहु-उद्देशीय भू-आधारित प्रणाली
अंत में निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि “भौगोलिक सूचना प्रणाली एक कम्प्यूटर सहायता प्राप्त तन्त्र है जो भौगोलिक संसार के विभिन्न पहलुओं से संबंधित आँकड़ों को एकत्र, संग्रह, विश्लेषण, परिचालन, प्रस्तरण तथा पुनर्प्रसारण करता है। यह किसी निर्णय पर पहुँचने का शक्तिशाली साधन या प्रणाली है"।
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